फिर बदलते वक़्त और देश के साथ लोगो की सोच भी बदलने लगी शिक्षा का
स्तर उठने लगा फिर कोई इंजिनियर कोई डॉक्टर कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट कोई वकील कोई
जज होने लगा… ऐसे में सामान्य बुद्धि वाले औसतन दिमाग रखने
वाले बच्चो पर समाज और परिवार का दबाव बढ़ने लगा फिर ये देखा जाने लगा की किसी
रिश्तेदार का बच्चा डॉक्टर है तो मेरा बच्चा भी डॉक्टर ही बनेगा पडोसी का बच्चा
अगर सी. ए. है तो मेरा बीटा भी वही बनेगा ऐसे में उनके अन्दर की कलाओं को दबा कर
उनके औसतन दिमाग को किसी मजदूर की भांति वजन उठाने पर मजबूर किया जाने लगा
परिणामस्वरूप परिवार और समाज की उम्मीदों के बोझ तले आत्महत्याओं का दौर चल निकला…
देश बदला, समाज बदला, शिक्षा का स्तर भी बदला, मगर माता पिता आज भी इस प्रतिस्पर्धा में लगे हुए की मेरा बच्चा उसके
बच्चे से कम कैसे…. उसका बच्चा सी.ए. है तो मेरा क्यों नहीं…
इतने परिवर्तन के बाद भी आज लोग 21वी सदी में
होने क बाद भी भेड़ चाल को ही अपनाए हुए है जबकि आज की दुनिया बहुत आगे है आज की
दुनिया में जितना स्तर पारम्परिक शिक्षा का है उतना ही आधुनिक शिक्षा का भी है!!
आज का युग केवल सी ए , इंजीनयर, डॉक्टर,
वकील यही सारी शिक्षा नहीं बल्कि कलात्मक विधाओं और शिक्षा का युग
है… आज का ये युग भेड़ चाल का युग नहीं है यहाँ करियर
फोटोग्राफी में भी है, इन्टरनेट चलाने में भी है, सोशल मीडिया में भी है सजावट जिसे इंटीरियर डेकोरेशन कहते है उसमे भी है
और फैशन डिज़ाइन में भी है, ऐसी कई आधुनिक शिक्षा है जिनमे
लोग लाखो की कमाई कर रहे है फिर चाहे वह वेब डिजाईन हो या फिर ग्राफ़िक डिजाईन या कोई स्केचिंग हो या एनीमेशन आज का युग है यहाँ भेड़ चाल चलो ये आवश्यक नहीं है यहाँ
जरुरत है दिल की सुनने की और सही को चुनने की…अपने अन्दर की
कला को पहचानने की और उसकी गुणवत्ता को निखारने की… तो भेड़
चाल छोडो… दिल की सुनो और सही को चुनो
महेश पालीवाल
युवा संरक्षक
:
प्रबन्धक :
कैरियर ज्ञान केंद्र, देवगढ़
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